जानिए-भ्रष्टाचार एवं अत्याचार अन्वेषण संस्थान के मुख्य संस्थापक और राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. पुरुषोत्तम मीणा 'निरंकुश' को!
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मेरा परिचय :
नाम : डॉ. पुरुषोत्तम मीणा 'निरंकुश', आस्तिक हिन्दू! तीसरी कक्षा के बाद पढाई छूटी! बाद में नियमित पढाई केवल 04 वर्ष! जीवन के 07 वर्ष मेहनत-मजदूरी जंगलों व खेतों में, 04 वर्ष 02 माह 26 दिन 04 जेलों में गुजारे और 20 वर्ष 09 माह 05 दिन दो रेलों में सेवा के बाद स्वैच्छिक सेवानिवृति! जेल के दौरान-कई सौ पुस्तकों का अध्ययन, कविता लेखन किया एवं जेल में ही ग्रेज्युएशन डिग्री पूर्ण की! हिन्दू धर्म, जाति, वर्ण, समाज, कानून, अर्थ व्यवस्था, आतंकवाद, राजनीति, कानून, संविधान, स्वास्थ्य, मानव व्यवहार, मानव मनोविज्ञान, दाम्पत्य, आध्यात्म सहित अनेकानेक विषयों पर सतत लेखन और चिन्तन! विश्‍लेषक, टिप्पणीकार, कवि और शोधार्थी! छोटे बच्चों, कमजोर व दमित वर्गों, आदिवासियों और मजबूर औरतों के शोषण, उत्पीड़न तथा अभावमय जीवन के विभिन्न पहलुओं पर अध्ययनरत! जयपुर से प्रकाशित हिन्दी पाक्षिक समाचार-पत्र "प्रेसपालिका" का सम्पादक! 1993 में स्थापित और वर्तमान में देश के 18 राज्यों में सेवारत राष्ट्रीय संगठन ‘भ्रष्टाचार एवं अत्याचार अन्वेषण संस्थान’ (बास-BAAS) का मुख्य संस्थापक तथा राष्ट्रीय अध्यक्ष! जिसमें 12.01.2012 तक 5244 आजीवन सदस्य सेवारत हैं!
E-mail : baasoffice@gmail.com, Ph. 0141-2222225, Mob. : 098285-02666
मेरी मान्यताएँ : 1-संविधान, कानून, न्याय व्यवस्था तथा प्रशासनिक असफलता और मनमानी की अनदेखी तथा जन्मजातीय विभेद के कारण भ्रष्टाचार एवं अत्याचार पनपा और बढ़ा है! 2-भारत, भारतीयता और हिन्दू समाज के समक्ष सबसे बड़ी चुनौती : (क) अपराधियों व शोषकों के तिरस्कार के बजाय, उनका महिमा मंडन तथा (ख) कदम-कदम पर ढोंग को मान्यता! 3-आरक्षित वर्ग-(अनुसूचित जन जाति-आदिवासी वर्ग) का होकर भी वर्तमान आरक्षण व्यवस्था से पूर्णत: असन्तुष्ट! क्योंकि यह आरक्षित वर्गों को पंगु बनाती है और यह सामाजिक वैमनस्यता को बढ़ावा दे रही है! लेकिन आरक्षण समाप्त करने से हालत सुधरने के बजाय बिगड़ेंगे! 4-मनमानी और नाइंसाफी के खिलाफ संगठित जनांदोलन की जरूरत! जिसके तीन मूल सूत्र हैं : (1) एक साथ आना शुरुआत है| (2) एक साथ रहना प्रगति है! और (3) एक साथ काम करना सफलता है| 5-सबसे ज्यादा जरूरी बदलाव : (1) "अपने आपको बदलो! दुनिया बदल जायेगी!" (2) भय और अज्ञान की नींद से जागो! उठो और संगठित होकर बोलो! न्याय जरूर मिलेगा| 6-मेरा सन्देश : आखिर कब तक सिसिकते रहोगे? साहस है तो सच कहो, क्योंकि बोलोगे नहीं तो कोई सुनेगा कैसे? 7-मेरा मकसद : मकसद मेरा साफ! सभी के साथ इंसाफ!
विभिन्न विषयों पर मेरे लेख/कुछ कविताएँ जो इंटरनेट/समाचार-पत्रों में चर्चा का विषय बने! शायद आपको भी पसन्द आयें!
यदि आपका कोई अपना या परिचित पीलिया रोग से पीड़ित है तो इसे हलके से नहीं लें, क्योंकि पीलिया इतन घातक है कि रोगी की मौत भी हो सकती है! इसमें आयुर्वेद और होम्योपैथी का उपचार अधिक कारगर है! हम पीलिया की दवाई मुफ्त में देते हैं! सम्पर्क करें : डॉ. पुरुषोत्तम मीणा 0141-2222225, 98285-02666

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Wednesday, September 7, 2011

अससंवेदनशीलता के मायने...?

यदि आतंवादी लगातार घटनाओं को जन्म नहीं दें तो आम व्यक्ति आतंकवाद के खिलाफ बोलने या आतंकवाद का विरोध करने के बारे में उसी प्रकार से चुप्पी साध ले, जिस प्रकार
से भ्रष्टाचार के मामले में साथ रखी है।
डॉ. पुरुषोत्तम मीणा 'निरंकुश'
जब-जब भी देश में बम विस्फोट होते हैं या फिदायीन हमले होते हैं तो सभी वर्गों द्वारा आतंकवाद की बढचढकर आलोचना की जाती है। कठोर से कठोर कानून बनाकर आतंकवाद से निजात दिलाने के लिये सरकार से मांग की जाती हैं। सरकार की ओर से भी हर-सम्भव कार्यवाही का पूर्ण आश्वासन भी दिया जाता है, लेकिन जैसे ही मरने वालों की आग ठण्डी होती है, आतंकवाद के खिलाफ लोगों का गुस्सा भी ठण्डा होने लगता है। यदि आतंवादी लगातार घटनाओं को जन्म नहीं दें तो आम व्यक्ति आतंकवाद के खिलाफ बोलने या आतंकवाद का विरोध करने के बारे में उसी प्रकार से चुप्पी साध ले, जिस प्रकार से भ्रष्टाचार के मामले में साथ रखी है।

इससे यह प्रमाणित होता है कि अपराधियों, राजनेताओं और उच्च पदों पर आसीन लोक सेवकों के साथ-साथ आम व्यक्ति भी संवेदना-शून्य होता जा रहा है। जिसके चलते अपने सामने घटित क्रूर घटनाओं पर भी आम व्यक्ति चुप्पी साध लेता है और आशा करने लगता है कि सरकार एवं प्रशासन उसके लिये हमेशा उपलब्ध रहें! यह कैसे सम्भव है कि यदि हम अपने पडौसी के सुख-दु:ख में भागीदार नहीं हो सकते तो वेतन लेकर सेवा करने वाले लोक सेवक, जिनका हमसे किसी भी प्रकार का आत्मीय या सामाजिक सम्बन्ध नहीं है, हमारे प्रति संवेदनशील रहेंगे।

दिनप्रतिदिन घटती इस संवेदनहीनता का खामियाजा हमें हर दिन किसी न किसी किसी क्षेत्र में, किसी न किसी जगह पर भुगतना पड रहा है। आज जितने भी अपराध और दुराचार हो रहे हैं, उसके लिये हमारी यही असंवेदनशील सोच भी जिम्मेदार है। जिसके चलते भ्रष्ट लोक सेवकों, अपराधियों और गुण्डा तत्वों के होंसले लगातार बढते जा रहे हैं और पुलिस, सामान्य प्रशासन एवं सरकार हमारी परवाह नहीं पालते हैं।

इसलिये यदि हमें अपने आपको तथा आनेवाली पीढियों को बचाना है तो अपने-आपके साथ-साथ, अपने आसपडौस के लोगों के प्रति भी संवेदनशील होना सीखना होगा। अन्यथा दूसरों से संवेदनशील रहने की और मानव अधिकारों की रक्षा की उम्मीद करना छोडना होगा।-19.01.2011

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